सोन एक अत्यंत प्राचीन नदी है। सोने के रंग की रेत के कारण इसका नाम सोन पड़ा है। यह रेत इसके तल पर पाई जाती है। इस नदी का प्राचीन नाम सोन, शोण भद्र और मेकलसुत भी है। महाभारत के वन पर्व में उल्लेख है कि इसमें स्नान करके आचमन करने यहां तक कि जल स्पर्श से भी वाजिमेध यज्ञ करने का फल मिलता है। नौवीं सदी के संस्कृत साहित्यकार राजशेखर ने गंगा, नर्मदा आदि को नदी की संज्ञा दी है लेकिन सोन को नद कहा है- शोण लौहिल्यो नदौ। सोन को हिरण्यवाहु भी कहते हैं। सोन का हिरण्यवाहु नाम यह संकेत करता है कि सोन में सोने के कण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। अबुल फजल ने – आइने-अकबरी में मैदानी सोन में स्वर्ण – मंडित पत्थरों (शालीग्राम) के पाये जाने की बात कही है।
उद्गम और विस्तार
सोन को मेकुलसुत भी कहा जाता है इससे यह स्पष्ट होता है कि सोन का उद्म मैकल पर्वत से ही हुआ है। मैकल पर्वत विध्य-सतपुड़ा का संधि पर्वत है और पुराणकालीन वृक्ष पर्वत है। इसी मैकल के पश्चिमी छोर पर बसा है अमरकंटक जहां से नर्मदा प्रवाहित होती है। धारणा यह है कि नर्मदा तथा सोन दोनों का उड़म अमरकंटक से ही हुआ है। सोन के उद्म के संबंध में पुरातत्व विभाग के अनुसार सोन का उद्गम पेन्ड्रा और केंदा के बीच सोन मुंडा में हुआ है। यह एक लंबी सकरी घाटी है और दो ऊंची-नीची पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस घाटी में बड़े-बड़े गड्ढे हैं वहीं सोन का उगम है जिसे सोन मुंडा कहा गया। आजकल इसे सोनकुंड भी कहा जाता हैं। उत्तर पूर्व की ओर पच्चीस तीस खेतों में बहने के बाद सोन का पानी जमीन के अंदर चला जाता है और आगे कुछ दूरी के बाद निकल कर पानी का एक कुंड बना लेता है जो आगे फिर नदी के रूप में विशाल स्वरूप ले लेता है। सोन का बरसात में विंध्य सतपुड़ा, पठार की लाल, पीली मिट्टी वाले पानी को लेकर मैदान में प्रवेश होता है। इससे इसकी धार और पाट बड़ा हो जाता है।
प्रवाह
सोन 784 किलोमीटर बहती है। जिसका बहाव 500 किलोमीटर मध्यप्रदेश, 82 किलोमीटर उत्तर प्रदेश में और 202 किलोमीटर बिहार में है। पश्चिम में महानदी से लेकर पूर्व में सोन सहायक कोयल जल क्षेत्र तक फैला है। मध्यप्रदेश में जबलपुर, पश्चिमी मंडला, शहडोल तथा सीधी जिले में सोन का बहाव है। छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़, सरगुजा, रायगढ़, जशपुर, बिलासपुर; उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के दक्षिण भाग और बिहार में पलामू जिला, पश्चिमी हजारी बाग, उत्तर-पश्चिम रांची आदि जिलों में इसका बहाव है। पटना से लगभग दस किलोमीटर उत्तर-पश्चिम हरदी छपरा गांव के सामने गंगा नदी से सोन का संगम होता है।
सोन नदी की सहायक नदियाँ
दायें तट की सहायक नदियाँ – बनास नदी, गोपद नदी, रिहन्द नदी, कन्हार नदी, उत्तर कोयल नदी।
बाएं तट की सहायक नदियाँ – घाघर नदी, जोहिला नदी, छोटी महानदी।
सोन नदी का महत्व
यह नदी मध्यप्रदेश की एक महत्वपूर्ण नदी है, जो प्रदेश की जलवायु और प्राकृतिक सौंदर्य को बढ़ाती है। सोन नदी पर कई बांध और पुल बनाए गए हैं, जिनमें डिहरी-ऑन-सोन बांध और कोइलवर पुल प्रमुख है। इस नदी का पानी मीठा और निर्मल होता है, जो इसके आसपास के क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है।
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