नर्मदा देश के मध्यभाग में पश्चिम की ओर बहती है। यह मध्यप्रदेश और गुजरात राज्य की प्रमुख नदी है। मान्यता है कि समस्त ताप नाशिनी नर्मदा की परिक्रमा से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इसे पुराणों में पुण्यमयी नदी कहा गया है। देश की सबसे प्राचीनतम नदी नर्मदा विंध्याचल की मेकल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान से निकलती है। यह मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर करीब 1312 किलोमीटर पथ तय कर भरुच के आगे खम्भात की खाड़ी में मिलती है।
पौराणिक ग्रंथों में नर्मदा जी का अस्तित्व अति प्राचीन है। यह इतिहास और भूगोल के उथल-पुथल की साक्षी है। इसके तट पर करोड़ों वर्ष पुराने डायनासोर और वनस्पतियों के जीवाश्म मिले हैं। मान्यतानुसार प्राकृतिक उथल-पुथल से समुद्र पीछे चला गया और फिर नर्मदा की उत्पत्ति हुई। मध्यप्रदेश में नर्मदा का प्रवाह क्षेत्र अमरकंटक से सोंडवा तक 1079 किलोमीटर है। जो इसकी कुल लंबाई का 82.24 प्रतिशत है। नर्मदा जी के किनारे 21 – जिले, 68 तहसीलें, 1138 ग्राम और 1126 घाट हैं। नर्मदा अपनी सहायक नदियों सहित प्रदेश के बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई और पेयजल का स्रोत है। नर्मदा नदी का कृषि, पर्यटन और उद्योगों के विकास में विशेष योगदान है। नर्मदा के तट पर उगाई जाने वाली मुख्य फसलें धान, गन्ना, दालें, तिलहन, आलू, गेहूं, कपास आदि हैं। इसके तट पर ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दृष्टि से कई पर्यटन स्थल हैं। नर्मदा नदी सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।
उद्गम स्थल
अमरकंटक नर्मदा का उद्गम स्थल है। पुराणों में इसे कलिंग क्षेत्र कहा गया है। संभवतः उस समय इसकी भौगोलिक सीमा उड़ीसा तक रही होगी। नर्मदा नदी का उद्गम स्थल 11 कोणीय एक बड़ा कुंड है, जो पश्चिम की ओर गौमुख के आकार में है। इसे कोटि तीर्थ कहते हैं। नर्मदा अमरकंटक से निकलकर कपिलधारा जल प्रपात का निर्माण करती है। इसके बाद दूधधारा में बहती है, जहां इसकी सहस्त्र धाराएं, बहुत ही सुंदर झरने का निर्माण करती है।
नर्मदा पर निर्मित बांध
नदी पर बने प्रमुख बांधो में ओंकारेश्वर और महेश्वर बांध शामिल हैं।
बहाव क्षेत्र
नर्मदा नदी मध्यप्रदेश के अमरंकटक से निकलकर शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, मंडला, डिंडौरी, जबलपुर, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, सीहोर, हरदा, खंडवा, खरगोन, बड़वानी आदि से होते हुए अपनी यात्रा पूरी करती है। इसके बाद 32 किलोमीटर मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र तथा 40 किलोमीटर मध्यप्रदेश एवं गुजरात की सीमाओं से बहते हुए गुजरात राज्य में प्रवेश कर 161 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हुए खंभात की खाड़ी में मिल जाती है। नर्मदा का कुल कछार क्षेत्र 98796 वर्ग किलोमीटर है। इस कछार का 85859 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र मध्यप्रदेश में है। 1538 वर्ग किलोमीटर महाराष्ट्र तथा 11399 वर्ग किलोमीटर गुजरात में है। नर्मदा कछार क्षेत्र में मध्यप्रदेश के 25, गुजरात के 5, छत्तीसगढ़ के 2 और महाराष्ट्र का एक जिला आता है।
सहायक नदियॉं
नर्मदा की अनेक सहायक नदियां हैं, लेकिन जिन सहायक नदियों का जलग्रहण क्षेत्र 500 वर्ग किलोमीटर से अधिक है, ऐसी प्रमुख सहायक नदियों की संख्या 41 है। इनमें से 19 सहायक नदियां दायें तट से तथा 22 नदियां बाएं तट से नर्मदा में मिलती हैं। कुल 41 प्रमुख सहायक नदियों में से 39 सहायक नदियां मध्यप्रदेश में मिलती हैं तथा केवल 2 सहायक नदियां गुजरात में मिलती हैं। इनके अतिरिक्त नर्मदा की कई उप सहायक नदियां भी हैं अर्थात एक नदी सहायक नदी से मिलती है तथा आगे जाकर वो सहायक नदी नर्मदा नदी में मिल जाती है।
दाहिनी ओर से प्रमुख सहायक नदियां हैं- हिरन, तेंदोरी, बरना, कोलार, मान, उरी, हटनी और ओरसांग।
प्रमुख बायीं सहायक नदियां हैं- बर्नर, बंजार, शेर, शक्कर, दूधी, तवा, गंजाल, छोटा तवा, कुंडी, गोई और कर्जन।
नर्मदा नदी को प्रपात बाहुल्य कहा जाता है। अपने उद्गम के बाद इस नदी का पहला प्रपात है कपिलधारा, इसमें ऐसा लगता है मानो नर्मदा यहां वेग से कूद पड़ी हो। नदी का अगला प्रपात है दूधधारा जिसमें वह दूध की तरह निर्मल-धवल बहती है। नर्मदा का पहला संगम है सिवनी संगम। यहां से जब नर्मदा आगे बढ़ती है तो डिंडौरी से होते हुए जाती है। यहां बैगा जनजातियों द्वारा नर्मदा नदी के प्रति मां और बेटे का स्नेह दिखाई देता है। डिंडौरी के आगे नर्मदा मंडला की ओर बढ़ती है। आगे नर्मदा प्रचंड वेग में बहती है और सहस्त्रधारा का निर्माण करती है। यहां नर्मदा का सहस्रधाराओं के साथ उफनता हुआ प्रवाह देखा जा सकता है। जबलपुर के भेड़ाघाट में नर्मदा संगमरमरी सौंदर्य का रूप धारण करती है, इसीलिये इसे सौंदर्य की सरिता भी कहा गया है।
चौंसठ योगिनी मंदिर
भेड़ाघाट के पास लगभग 50 फीट ऊंची गोल पहाड़ी पर लगभग दसवीं शताब्दी में बना प्राचीन मंदिर है। यहां 109 सीढ़ियों को पार करके मंदिर में पहुंचा जा सकता है। इस मंदिर में 64 कलचुरिकालीन योगिनी मूर्तियां स्थापित हैं। इसीलिए इसे चौंसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। मंदिर में जटामुकुट पहने मगर वाहन पर विराजमान तीसरी योगिनी रुषिणी नर्मदा की मूर्ति है। यह मंदिर पुरातन समय में लोगों की नर्मदा के प्रति श्रृद्धा को स्थापित करता है।
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